नाभिपद्म भुवा विष्णेब्रह- ्मणानिर्मि- तं जगत् ।।
स्थावरं जंगमं शक्त्या गायत्र्या एवं वै ध्रुवम॥
(वि- ्णोः) विष्णु की (नाभिपद्म भुवा) नाभि कमल से उत्पन्न हुए (ब्रह्मणा) ब्रह्मा ने (गायत्र्या- शक्त्या एव) गायत्री शक्ति से ही (स्थावरं जंगमं) जड़ तथा चेतन (जगत्) संसार को (निर्मितं) बनाया (वैध्रुवम्) यह निश्चय है ।।
अनादि परमात्म तत्व से ब्रह्म से यह सब कुछ उत्पन्न हुआ है ।। सृष्टि उत्पन्न करने का विचार उठते ही ब्रह्मा में एक स्फुरणा उत्पन्न हुई जिसका नाम है- शक्ति ।। शक्ति के द्वारा दो प्रकार की सृष्टि हुई एक जड़ दूसरी चैतन्य ।। जड़ सृष्टि का संचालन करने वाली शक्ति प्रकृति और चैतन्य सृष्टि को उत्पन्न करने वाली शक्ति का नाम सावित्री है ।।
अनादि परमात्म तत्व से ब्रह्म से यह सब कुछ उत्पन्न हुआ है ।। सृष्टि उत्पन्न करने का विचार उठते ही ब्रह्मा में एक स्फुरणा उत्पन्न हुई जिसका नाम है- शक्ति ।। शक्ति के द्वारा दो प्रकार की सृष्टि हुई एक जड़ दूसरी चैतन्य ।। जड़ सृष्टि का संचालन करने वाली शक्ति प्रकृति और चैतन्य सृष्टि को उत्पन्न करने वाली शक्ति का नाम सावित्री है ।।
पुराणों में वर्णन मिलता है कि सृष्टि के आदि काल में भगवान की नाभि से कमल उत्पन्न हुआ, कमल के पुष्प में ब्रह्मा से सावित्री हुई, सावित्री और ब्रह्मा के संयोग से चारों वेद उत्पन्न हुए ।। वेद से समस्त प्रकार के ज्ञानों का उद्भव हुआ ।। तदनंतर ब्रह्मा जी ने पंच भौतिक सृष्टि की रचना की ।। इस अलंकारिक गाथा का रहस्य यह है कि निर्लिप्त, निर्विकार, निर्विकल्प- परमात्म तत्व की नाभि में से केन्द्र भूमि में से- अन्तःकरण में से- कमल उत्पन्न हुआ और वह पुष्प की तरह खिल गया ।।
श्रुति में कहा है कि सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा की इच्छा हुई कि ‘एकोऽहं बहुस्याम’ मैं एक से बहुत हो जाऊँ ।। यह उसकी इच्छा, स्फुरणा, नाभिदेश में से निकल कर बाहर प्रस्फुटित- हुई अर्थात् कमल की लतिका उत्पन्न हुई और उसकी कली खिल गई ।।
इस कमल पुष्प पर ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं ।। यह ब्रह्मा, सृष्टि निर्माण की त्रिदेव- शक्ति का प्रथम अंश है, आगे चल कर वह त्रिदेव- शक्ति उत्पत्ति, स्थिति और नाश का कार्य करती हुई ब्रह्मा, विष्णु, महेश के रूप में दृष्टिगोचर- होगी ।। आरम्भ में कमल पुष्प पर केवल ब्रह्माजी ही प्रकट होते हैं क्योंकि सर्वप्रथम उत्पत्ति करने वाली शक्ति की आवश्यकता हुई
अब ब्रह्मा जी का कार्य आरम्भ होता है ।। उन्होंने दो प्रकार की सृष्टि उत्पन्न की, एक चैतन्य दूसरी जड़ ।चैतन्य सृष्टि के अन्तर्गत वे सभी जीव आ जाते हैं जिनमें इच्छा, अनुभूति, असंभावना पाई जाती है ।। चैतन्यता की एक स्वतंत्र सृष्टि हे जिसे विश्व का प्राणमय कोष कहते हैं ।। निखिल विश्व में एक चैतन्य तत्व भरा हुआ है जिसे ‘प्राण तत्व के तीन वर्ग हैं और सत्, रज्, तम यह तीन इसके वर्ण हैं ।। इन्हीं तत्वों को लेकर आत्माओं के सूक्ष्म, कारण और लिंग शरीर बनते हैं ।। सभी प्रकार के प्राणी इसी प्राण तत्व से चैतन्यता एवं जीवन सत्ता प्राप्त करते हैं ।।
जड़ सृष्टि के निर्माण के लिए ब्रह्मा जी ने पंच भूतों को निर्माण किया ।। पृथ्वी, जल, वायु, तेज, आकाश के द्वारा विश्व के सभी परमाणुमय पदार्थ बने ।। ठोस, द्रव, गैस इन्हीं तीनों रूपों में प्रकृति के परमाणु अपनी गतिविधि जारी रखते हैं ।। नदी, पर्वत, धातु, धरती आदि का सभी पसारा इन पंच भौतिक परमाणुओं का खेल है ।। प्राणियों के स्थूल शरीर भी इन्हीं प्रकृति जन्य पंच तत्वों के बने होते हैं ।।
क्रिया दोनों सृष्टियों में है ।। प्राणमय चैतन्य सृष्टि में अहंकार, संकल्प और प्रेरणा की गतिविधियाँ- विविध रूपों में दिखाई पड़ती है ।। भूत मय जड़ सृष्टि में, शक्ति, हलचल और सत्ता इन आधारों के द्वारा विविध प्रकार के रंग रूप, आकर प्रकार बनते बिगड़ते रहते हैं ।। जड़ सृष्टि का आधार परमाणु और चैतन्य सृष्टि का आधार संकल्प है ।। दोनों ही आधार अत्यन्त सूक्ष्म और अत्यन्त बलशाली हैं, इनका नाश नहीं होता केवल रूपान्तर होता रहता है ।।
जड़ चेतन सृष्टि के निर्माण में ब्रह्मा की दो शक्तियाँ काम कर रही हैं ।। (1) संकल्प शक्ति, (2) परमाणु शक्ति ।। इन दोनों में प्रथम संकल्प शक्ति की आवश्यकता हुई, क्योंकि बिना उसके चैतन्य का आविर्भाव न होता और बिना चैतन्य के परमाणु का उपयोग किसलिए होता ।। अचैतन्य सृष्टि तो अपने आप में अन्धकार मय थी, क्योंकि न तो उसका किसी को ज्ञान होता है और न उसका कोई उपयोग होता ।। ‘चैतन्य’ के प्रकटीकरण की सुविधा के लिए उसकी साधन सामग्री के रूप में ‘जड़’ का उपयोग होता है ।। अस्तु आरम्भ में ब्रह्माजी ने चैतन्य बनाया, ज्ञान का संकल्प का आविष्कार किया, पौराणिक भाषा में यों कहिए कि सर्वप्रथम वेदों का उद्घाटन हुआ ।।
पुराणों में वर्णन मिलता है कि ब्रह्मा के शरीर से एक सर्वाङ्ग सुन्दर तरुणी उत्पन्न हुई, यह उनके अंग से उत्पन्न होने के कारण उनकी पुत्री हुई ।। इस तरुणी की सहायता से उन्होंने अपना सृष्टि निर्माण कार्य जारी रखा ।। इसके पश्चात् उस अकेली रूपवती युवती को देखकर उनका मन विचलित हो गया और उन्होंने उससे पत्नी के रूप में रमण किया ।। इस मैथुन से मैथुनी संयोगज- परमाशुमवी भौतिक सृष्टि उत्पन्न हुई ।।
इस कथा के आलंकारिक रूप को, रहस्यमय पहेली को न समझा कर कई व्यक्ति अपने मन में प्राचीन तथ्यों को उथली और अश्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं ।। वे यह भूल जाते हैं कि ब्रह्मा कोई मनुष्य नहीं हैं और न उससे उत्पन्न हुई शक्ति पुत्री या स्त्री है और न पुरुष स्त्री की तरह उनके बीच में समागम होता है ।। यह तो सृष्टि निर्माण काल के तथ्य को गूढ़ पहेली के रूप में आलंकारिक ढंग से प्रस्तुत करके कवि ने अपनी कलाकारिता का परिचय दिया है ।।
ब्रह्मा, निर्विकार परमात्मा की वह शक्ति है जो सृष्टि का निर्माण करती है ।। इस निर्माण कार्य को चलाए रखने के लिए उसकी तथा परमाणु शक्ति कहते हैं ।। संकल्प शक्ति, सतोगुण सम्भव है, उच्च आत्मिक तत्वों से सम्पन्न है इसलिए उसे सुकोमल, शिशु सी पवित्र पुत्री कहा है ।। यही पुत्री गायत्री है ।। अब इस दिशा में कार्य हो चुका ।। चैतन्य तत्वों को निर्माण हो चुका तो ब्रह्मा जी ने अपनी निर्माण शक्ति की सहायता से मैथुनी सृष्टि को संयोगज परमाणु प्रक्रिया को, आरम्भ कर दिया, तब वह स्त्री के रूप में पत्नी के रूप में कही गई तब उसका नाम सावित्री हुआ इस प्रकार गायत्री और सावित्री पुत्री तथा पत्नी के नाम प्रसिद्ध हुई ।।