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अपने भाग्य को जैसा चाहें वैसा लिखाना, अपने हाथ की बात है।

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जब तक आप दूसरों पर आश्रित रहते हैं या समझते हैं कि हमारे कष्टों को कोई और दूर करेगा, तब तक बहुत बड़े भ्रम में हैं। जो उलझनें आपके सामने हैं, उनका दु:खदायी रूप अपनी त्रुटियों के कारण है। उन त्रुटियों को दूर करके आप स्वयं ही अपनी उलझनें सुलझा सकते हैं।

संसार में सफलता प्राप्त करने की आकांक्षा के साथ ही अपनी योग्यता में वृद्धि करना भी आरंभ कीजिए। आपका भाग्य किस प्रकार लिखा जाए, इसका निर्णय करते समय विधाता आपकी आतंरिक योग्यताओं की परख करता रहता है। उन्नति करने वाले गुणों को यदि अधिक मात्रा में जमा कर लिया गया है, तो भाग्य में उन्नति का लेखा लिखा जाएगा और यदि उन्नायक गुणों को अविकसित पड़ा रहने दिया गया है, दुर्गुणों को, मूर्खताओं को अंदर भर कर रखा गया है, तो भाग्य की लिपि दूसरी होगी।

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विधाता लिख देगा कि `इसे तब तक दु:ख-दुर्भाग्यों में ही पड़ा रहना होगा, जब तक कि योग्यताओं का संपादन न करे।’ अपने भाग्य को जैसा चाहें वैसा लिखाना, अपने हाथ की बात है। यदि आप आत्मनिर्भर हो जाएँ, जैसा होना चाहते हैं उसके अनुरूप अपनी योग्यताएँ बनाने में प्रवृत्त हो जाएँ, तो विधाता को विवश होकर अपनी मनमरजी का भाग्य लिखना पड़ेगा। जब आत्मविश्वास के साथ सुयोग्य मार्ग की तलाश करेंगे, तो वह किसी न किसी प्रकार मिल कर ही रहेगा।

? अखण्ड ज्योति

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