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मधुमक्खी बनाम मक्खी-मच्छर प्रकृति

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मधुमक्खी से उम्मीद करो कि वह पुष्प पर बैठेगी और उसका चयन करेगी। लेकिन मक्खी से से उम्मीद मत करो कि कचड़ा छोड़कर वह पुष्प चुनेगी, वह तो कचड़े पर ही बैठेगी। गाय व घोड़े साफ स्थान पर चारा चरेंगे व बैठेंगे। सुअर और भैंस से उम्मीद मत करो कि वह कीचड़ में नहीं लौटेंगे।

तुम्हारे भाषण व ज्ञान देने से मक्खी, सुअर व भैस कचड़ा व कीचड़ नहीं छोड़ेंगे। जैसे भगवान कृष्ण के ज्ञान देने से दुर्योधन ने अधर्म नहीं छोड़ा।

अतः इसीप्रकार अपने मक्खी, सुअर, भैंस की प्रवृत्ति के पड़ोसी, रिश्तेदार से यह उम्मीद मत करो कि वह तुम्हारी निंदा, चुगली नहीं करेंगे और तुम पर अपशब्दों व तानों के कीचड़ नहीं फेंकेंगे। अतः उन्हें इग्नोर करें और अपने लक्ष्य की ओर बढ़े।

साथ ही स्वयं पर भी चेकलिस्ट लगाएं कि हम स्वयं मख्खी है या मधुमक्खी? निंदा-चुगली का कचड़ा पसन्द है? या ध्यान-स्वाध्याय-भजन-सत्संग का पुष्प?

मक्खी रोग उत्तपन्न करती है और मधुमक्खी मीठा शहद उतपन्न करती है। स्वयं के व्यवहार व स्वभाव की चेकलिस्ट चेक कीजिये कि आपका शहद से मीठा व्यवहार है या कड़वा, दुःख-विषाद व रोग उतपन्न करने वाला मक्खी-मच्छर सा व्यवहार है?

यदि परिवर्तन चाहते तो परिवर्तन का हिस्सा बनो…स्वयं का सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है…

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“गलतियां हर किसी से होती है और गलतियां करना ही इस बात का प्रमाण है कि आप कोशिश कर रहे है कल से बेहतर बनने की कुछ नया करने की ।”

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