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Inspiration

शक्ति-स्रोत की सच्ची शोध

By ValsadOnline

February 22, 2020

अष्ट सिद्धियाँ तो उन छोटे-छोटे कीड़ों में भी वर्तमान है, जो चलते समय पैरों के नीचे दबकर मर जाते हैं। मनुष्य यदि सिद्धियाँ प्राप्त करने की बात सोचे तो असामान्य नहीं मानेंगे। वास्तव में सिद्धियाँ प्राप्त करने की नहीं, वह तो स्वभाविक गुण के रूप में आत्मा में सदैव ही विद्यमान हैं। परमात्मा ने हमें शरीर रूपी यंत्र दिया है, वह उसी की अनुभूति में प्रयुक्त होना चाहिए था पर आधार के अनुपयुक्त प्रयोग के कारण हम आत्मा के उन दिव्य गुणों के प्रकाश से वंचित रह जाते हैं। सिद्धियों की खोज में उचित साधन को भूल जाने के कारण न तो सिद्धियाँ मिल पाती हैं और न शाँति। मनुष्य बीच में ही लड़खड़ाता रहता है।पातंजल योगसूत्र में एक जगह कहा है- ‘निमित्तमप्रयोजंक प्रकृतीनाँ वरणभेदस्तु ततः क्षेत्रिकवत्।’ अर्थात् जिस प्रकार खेत में पानी लाने के लिये केवल मात्र मेंड़ काट कर उसका जल-स्रोत से संबंध जोड़ देने से खेत में पानी प्रवाहित होने लगता है, उसी प्रकार जीवात्मा में पूर्णता, पवित्रता और सारी शक्तियाँ पहले से ही विद्यमान हैं। हमें शरीर और मन के भौतिक बंधनों की मेंड़ काटकर उसका संबंध भर आत्मा से जोड़ने की आवश्यकता है। एक बार यदि शरीर और मन के सुखों की ओर से ध्यान हटकर आत्मा में केन्द्रित हो जाये, तो आत्मा की संपूर्ण शक्तियाँ और विभूतियाँ जीव को एक स्वाभाविक धर्म की तरह उपलब्ध हो जाती हैं। ऐसा न करने तक उसके और सामान्य कीड़े-मकोड़ों के जीवन में किसी प्रकार का भी अन्तर नहीं। -स्वामी विवेकानन्द