दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने ही सिखों को पंच ककार दिये और इन्होंने ही खालसा पंथ की स्थापना की
शौर्य और साहस के प्रतीक श्री गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष महीने के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को बिहार के पटना साहिब में हुआ था। इस बार ये तिथि 20 जनवरी को है। इस दिन 354वां प्रकाश पर्व मनाया जाएगा। इनके बचपन का नाम गोविंद राय था। पिता गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद से वे 9 साल की उम्र में ही दसवें सिख गुरु बनाए गए थे। इन्हें दशमेश पिता का दर्जा भी मिला हुआ है। एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ गुरु गोविंद सिंह निर्भयी योद्धा, कवि और दार्शनिक भी थे। गुरु गोबिंद सिंह ने ही आदिग्रंथ यानी गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु की गद्दी दी। इसके साथ ही सिखों को पंच ककार धारण करने का आदेश भी इनका ही दिया हुआ है। गुरु गोबिंद सिंह जी का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
श्री गुरु गोबिंद सिंह की बताई बातें 1. धरम दी किरत करनी: अपनी जीविका ईमानदारी पूर्वक काम करते हुए चलाएं। 2. दसवंत देना: अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे दें। 3. गुरुबानी कंठ करनी: गुरुबानी को कंठस्थ कर लें। 4. कम करन विच देरदार नहीं करना: काम में खूब मेहनत करें और काम को लेकर कोताही न बरतें। 5. धन, जवानी, तै कुल जात दा अभिमान नहीं करना: जवानी, जाति और कुल धर्म को लेकर अभिमान नहीं करना चाहिए। 6. किसी दि निंदा, चुगली, अतै इर्खा नहीं करना: किसी की चुगली-निंदा से बचें और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय मेहनत करें। 7. परदेसी, लोरवान, दुखी, अपंग, मानुख दि यथाशक्त सेवा करनी: किसी भी परदेशी नागरिक, दुखी व्यक्ति, विकलांग व जरूरतमंद शख्स की मदद जरूर करें। 8. बचन करकै पालना: अपने सारे वादों पर खरा उतरने की कोशिश करें। 9. शस्त्र विद्या अतै घोड़े दी सवारी दा अभ्यास करना: खुद को सुरक्षित रखने के लिए शारीरिक सौष्ठव, हथियार चलाने और घुड़सवारी की प्रैक्टिस जरूर करें। आज के संदर्भ में नियमित व्यायाम जरूर करें। 10. जगत-जूठ तंबाकू बिखिया दी तियाग करना: किसी भी तरह के नशे और तंबाकू का सेवन न करें।
विद्वानों के थे संरक्षक सिखों के लिए 5 चीजें- केश, कड़ा, कछैरा (कच्छा), कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था। इन चीजों को पांच ककार कहा जाता है। इन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए जरूरी होता है। गुरु गोबिंद सिंह ने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखी थीं। साथ ही उन्होंने शस्त्रकला का प्रशिक्षण भी लिया था। गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे, उन्होंने श्री दसम ग्रंथ साहिब की रचना की। उन्हें विद्वानों का संरक्षक माना जाता था। उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसलिए उन्हें संत सिपाही भी कहा जाता था।