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जैसी आपकी सोच, वैसे आपके कर्म

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समय बड़ा विचित्र है न ये समय।  कहा जाय तो एक भाव है, एक संख्या है, एक विषय है, अब देखिये न, सूर्योदय सबका एक साथ होता है, है न? किसी का आगे किसी का पीछे तो नहीं होता न? सूर्यास्त भी सबका एक साथ होता है? अब सोचिये यही समय सबके लिये भिन्न-भिन्न है। किसी के लिये यही समय अच्छा है, तो किसी के लिये यही समय बुरा है। अभी इसी क्षण किसी के मुख पर सफलता का तेज है, तो किसी के मुख पर असफलता की निराशा। भला ऐसा क्यों ? क्यों ये समय किसी के लिये श्रेष्ठ है, क्यों ये समय किसी को निराश कर रहा है? इसका उत्तर है, आपकी सोच, आपके कर्म। जैसी आपकी सोच, जैसे आपके कर्म। उसी  के अनुरूप होगा आपका ये सब।

आपके जीवन में सुख तभी मिलेगा जब आप किसी के जीवन में आशा की मुस्कान ला दो। आपको प्रसन्नता तभी मिलेगी, जब जीवन में आप किसी को प्रसन्न कर दो। हाँ ये हर बार नहीं कि आप किसी को प्रसन्नता दे पाओ। किन्तु ये तो आपके वश में है कि किसी को आप दुःख न पहुँचाओ, आप किसी को नाराज न करो? और आपका ये किसी को दुःख न पहुँचाने का प्रयास भी आपका कर्म ही तो है, और आपको इस शुभकर्म का फल प्रकृति आपको अवश्य देगी। स्मरण रखियेगा अच्छा समय उसी का आता है,  जो कभी किसी का बुरा न चाहे।

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