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इतिहास में आज:वो भाषण, जिसे ‘आइडिया ऑफ पाकिस्तान’ कहते हैं, ये स्पीच ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ लिखने वाले ने दी थी

‘मैं पंजाब, नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर, सिंध और बलूचिस्तान को एक संयुक्त राज्य के रूप में देखना चाहता हूं। ब्रिटिश राज के तहत या फिर उसके बिना भी एक खुद-मुख्तार नार्थ-वेस्ट भारतीय मुस्लिम राज्य ही मुसलमानों का आखिरी मुस्तकबिल है।’ 29 दिसंबर 1930 को मुस्लिम लीग के 25वें अधिवेशन में दिए गए इस भाषण को अब पाकिस्तान में ‘आइडिया ऑफ पाकिस्तान’ के नाम से पढ़ाया जाता है। ये भाषण दिया था मशहूर शायर सर मोहम्मद इकबाल यानी अल्लामा इकबाल ने। हालांकि, पाकिस्तान में लाहौर हाइकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस रहे उनके बेटे जस्टिस जावेद इकबाल इसका विरोध करते थे।

जस्टिस जावेद कहते थे कि 1930 के मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में इकबाल ने यह जरूर कहा था कि उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत, सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान को मिलाकर एक वृहद प्रदेश ‘ब्रिटिश इंडिया’ के तहत ही बनाया जाना चाहिए। मुस्लिम बहुल राज्य बनाने की इस अवधारणा को ही जानबूझकर या अनजाने में ‘पाकिस्तान का ख्वाब’ कहा गया।

जस्टिस जावेद कहते थे कि मेरे पिता ने 1931 में मुस्लिमों के लिए अलग राष्ट्र की मांग के विरोध में अंग्रेज हुकूमत को खत लिखा था, जो अक्टूबर 1931 में टाइम मैगजीन में भी छपा था। इस खत में उन्होंने कहा था कि मैंने ब्रिटिश इंडिया से बाहर अलग मुस्लिम स्टेट की मांग नहीं की थी। मैं तो सांप्रदायिक आधार पर पंजाब के बंटवारे के भी खिलाफ हूं, जैसा कि कुछ लोग सुझाव दे रहे हैं। असल में साइमन कमीशन की रिपोर्ट और जवाहरलाल नेहरू ने समुदायों की बहुसंख्या के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की जो वकालत की है, मैं उसी के तहत मुस्लिम बहुल प्रदेश की बात कर रहा हूं।’

अल्लामा इकबाल का जन्म 9 नवंबर 1887 को सियालकोट में हुआ था। उनके पिता शेख नूर मोहम्मद दर्जी का काम करते थे। इकबाल ने कानून, दर्शन, फारसी और अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई की थी। लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से 1899 में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने इसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के लेक्चरर के रूप में नौकरी की। 1904 में इकबाल अपना तराना ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’ लिख चुके थे और मशहूर हो चुके थे। अगले साल आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए। यहां कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज से आर्ट्स में ग्रेजुएशन किया। 1907 में वो म्यूनिख चले गए और वहां लुडविंग मेक्समिलियन विश्वविद्यालय से PHD की। इसके बाद उन्होंने कानून की भी पढ़ाई की।

वहां से लौटे तो गवर्नमेंट कॉलेज में दो साल और पढ़ाया। उसके बाद सरकार नौकरी से इस्तीफा देकर फिर वकालत करने लगे। 1922 में उन्हें नाइटहुड की उपाधि मिली। 1927 में पंजाब असेंबली के लिए चुन लिए गए। 1928-29 में अलीगढ़, हैदराबाद और मद्रास विश्वविद्यालयों में उन्होंने 6 लेक्चर दिए थे, जिनसे उनके धार्मिक विचार का पता चलता है। इकबाल के जिस भाषण को आज के पाकिस्तान में आइडिया ऑफ पाकिस्तान के तौर पर पढ़ाया जाता है। उस पाकिस्तान को इकबाल खुद नहीं देख सके। 21 अप्रैल 1938 को उनका निधन हो गया।

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