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आज का इतिहास:उस शख्सियत का जन्म, जिसकी वजह से नेत्रहीनों का पढ़ना-लिखना संभव हो पाया

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फ्रांस में एक छोटा सा कस्बा है कुप्रे। यहां 1809 में आज ही के दिन जन्म हुआ लुई ब्रेल का। वही लुई ब्रेल, जिन्होंने नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार किया। लुई बचपन से नेत्रहीन नहीं थे, लेकिन बचपन में उनके साथ एक हादसा हुआ और उनकी आंखों की रोशनी चली गई। दरअसल, लुई के पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिए काठी बनाने का काम किया करते थे। उन पर काम का बोझ ज्यादा रहता था। इसलिए उन्होंने अपनी मदद के लिए 3 साल के लुई को भी अपने काम में लगा लिया।

एक दिन लुई पिता के साथ काम करते वक्त वहां के औजारों से खेलने लगे। एक औजार उनकी आंख में लग गया। बहुत खून बहा। उस वक्त परिवार ने इसे मामूली चोट समझकर मरहम-पट्टी कर दी। जैसे-जैसे लुई की उम्र बढ़ रही थी, वैसे-वैसे घाव भी गहरा होता जा रहा था। 8 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते लुई की आंखों की रोशनी चली गई।

ऐसे आया ब्रेल लिपि बनाने का आइडिया
लुई की उम्र उस वक्त 16 साल थी। उसी समय उनकी मुलाकात फ्रांस की सेना के कैप्टन चार्ल्स बार्बियर से हुई। चार्ल्स ने लुई को नाइट राइटिंग और सोनोग्राफी के बारे में बताया। इसी की मदद से सैनिक अंधेरे में पढ़ा करते थे। ये लिपि कागज पर उभरी हुई होती थी और 12 बिंदुओं पर आधारित थी। यहीं से लुई को ब्रेल लिपि का आइडिया आया।

लुई ने उसी लिपि में सुधार किया और 12 बिंदुओं की जगह 6 बिंदुओं में तब्दील कर दिया। लुई ने ब्रेल लिपि में 64 अक्षर और चिन्ह बनाए। इसमें विराम चिन्ह और संगीत के नोटेशन लिखने के लिए भी जरूरी चिन्ह बनाए गए। 1825 में लुई ने ब्रेल लिपि का आविष्कार कर दिया।

1851 में उन्हें टीबी की बीमारी हो गई, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ने लगी और 6 जनवरी 1852 को मात्र 43 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके निधन के 16 साल बाद 1868 में रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ ने इस लिपि को मान्यता दी। भारत सरकार ने 2009 में लुई ब्रेल के सम्मान में डाक टिकिट जारी किया था। इतना ही नहीं, लुई की मौत के 100 साल पूरे होने पर फ्रांस सरकार ने उनके दफनाए शरीर को बाहर निकाला और राष्ट्रीय ध्वज में लपेटकर पूरे राजकीय सम्मान के साथ दोबारा दफनाया।

दुनिया को मिली सबसे ऊंची इमारत
आज ही के दिन 2010 में दुबई में दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा का उद्घाटन हुआ था। बुर्ज खलीफा की ऊंचाई 828 मीटर है। इसका निर्माण 2004 से शुरू हुआ था। इसको बनाने में 1.10 लाख टन कॉन्क्रीट और 55 हजार टन स्टील का इस्तेमाल हुआ था।

बुर्ज खलीफा में 163 फ्लोर हैं। इसके 76वें फ्लोर पर दुनिया का सबसे ऊंचा स्वीमिंग पूल और 158वें फ्लोर पर दुनिया की सबसे ऊंची मस्जिद बनी है। 144वें फ्लोर पर दुनिया का सबसे ऊंचा नाइटक्लब है।

इस बिल्डिंग का बाहरी हिस्सा 26 हजार ग्लास से मिलकर बना है। इसी वजह से ये शीशे की तरह दिखती है। इसे बनाने के लिए रोज करीब 12 हजार मजदूरों ने काम किया। ऐसा बताया जाता है कि ऊंचाई के कारण बिल्डिंग के टॉप फ्लोर का टेम्परेचर ग्राउंड फ्लोर की तुलना में 15 डिग्री सेल्सियस कम रहता है।

 

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