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इतिहास में आज:दुनिया की सबसे चर्चित रायफल बनाने वाले की कहानी, जो कविता लिखने का शौकीन था

AK-47 दुनिया में शायद सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली रायफल है। दुनियाभर में AK-47 के करीब 10 करोड़ अलग-अलग वर्जन यूज हो चुके हैं। इसे बनाने वाले मिखाइल कलाश्निकोव की आज पुण्यतिथि है। 2013 में आज ही के दिन उनका निधन हुआ था। वो 1919 में सोवियत संघ के कुर्या में पैदा हुए थे। मशीनों से इतना प्यार था कि सेना में टैंक मैकेनिक के तौर में भर्ती हुए। एक और शौक था कविता लिखने का। कलाश्निकोव ने जीवनभर कविताएं लिखीं। उनकी कविताएं की 6 किताबों की शक्ल में भी छपी हैं।

बचपन में ही कलाश्निकोव और उनके परिवार को कुर्या से सर्बिया डिपोर्ट कर दिया गया था। कलाश्निकोव जब सातवीं में पढ़ते थे तो वो करीब एक हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा कर वापस अपने घर कुर्या आ गए थे। महज 19 साल की उम्र में रूसी सेना में शामिल हो गए।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जून 1941 में हिटलर ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया। इस लड़ाई में सोवियत संघ के 88 लाख से ज्यादा सैनिक मारे गए। कलाश्निकोव के टैंक में भी आग लगी। वे बुरी तरह घायल हुए। चोट से रिकवरी के दौरान हथियार बनाने का काम करने लगे। 1947 में महज 28 साल की उम्र में उन्होंने ऑटोमैटिक कलाश्निकोव 47 यानी AK-47 बनाई। ऑटोमैटिक का मतलब स्वचालित और कलाश्निकोव इसे बनाने वाले मिखाइल कलाश्निकोव के नाम पर था। ये बंदूक 1947 में बनाई गई थी इसलिए नाम के अंत में 47 लगा दिया गया।

कहते हैं कि इस रायफल की सबसे बड़ी खासियत इसकी सिंप्लिसिटी है। ये ईजी टू यूज, ईजी टू रिपेयर, ईजी टू मेंटेन रायफल है। इसकी इफेक्टिवनेस इसी से पता चलती है कि फुल ऑटोमैटिक सेटिंग पर इस रायफल से एक मिनट में 600 राउंड फायर किए जा सकते हैं।

उम्र के आखिरी पड़ाव में कलाश्निकोव ने कहा था कि अगर उन्हें दोबारा कुछ बनाने का मौका मिलेगा तो वो इससे कम खतरनाक चीज बनाना चाहेंगे। जैसे किसानों के लिए घास काटने की मशीन। हालांकि, जब उनसे पूछा गया कि आपके बनाए हथियार से हजारों लोगों की जान जाती है। ये सोचकर आपको नींद कैसे आती है तो उन्होंने जवाब दिया, ‘मैं बहुत अच्छे से सोता हूं, धन्यवाद’।

किसानों के मसीहा की कहानी

आज किसान दिवस है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जन्मदिन। वे किसानों के सबसे बड़े नेता कहे जाते हैं। चौधरी चरण सिंह देश के पांचवें प्रधानमंत्री तो बने, लेकिन केवल 23 दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 1939 में अंग्रेजों के शासन के दौरान जब संयुक्त प्रदेश (मौजूदा उत्तर प्रदेश) में कांग्रेस सरकार बनी, तब चरण सिंह किसानों को सूदखोरों के चंगुल से निकालने के लिए डेप्ट रिडेम्सन बिल लेकर आए। यूपी में मंत्री रहते किसानों के लिए जमींदारी उन्मूलन बिल लाए। केंद्र में मंत्री रहते हुए नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डवलपमेंट यानी नाबार्ड की स्थापना की। चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री के तौर पर संसद में बोलने का मौका नहीं मिल सका। कहते हैं किसानों का ये मसीहा अगर संसद में बोलता, उसे कुछ और वक्त मिलता तो किसानों की किस्मत पलट सकती थी।

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